Wednesday, November 17, 2010

आत्मव्यथा

वक़्त बन के चल देते है लोग कभी,
गुजरे साथ पहेलियों में फेर देते है कही....

ढूँढ नही पाते है उन पहलुओ की नमी,
अक्सर हम रो लेते है सिरहाने में कही....

शाम को तनहा हर दिन बहलाते है यही,
खो देते है खुद को तेरे तहखाने में कही....

बेपरवाह ही तखल्लुस हो गया है अबी,

मंजिलों से भी मुह फेर लेते है कही....



Monday, July 12, 2010

इबादतें-इश्क

बेमिजाज बारिश से आज मुलाकात हुई,
सुर्ख होठों की नरमी भी आज बेईबादत मिली....

उलझे से नम गेसूओं की बहार में,
हर वो तड़पन भी आज उस पार दिखी....

अंतर्द्वंद था अन्दर आगोश में न भर ले,
बाहों की भंवर इतनी सुलझी सी मिली....

शहनाई है सजी बेहोश बैरन तन्हाई में,
इश्क की मंजिल में इबादत जो दिखी....

Thursday, July 8, 2010

ग़मगीन सासें

भाग रही है ग़मगीन सांसें,
मेरे इस मैखाने से....
मै भी बस पी रहा हूँ सागर,
दुनिया को इस कदर भुलाने में....

खामोश हो रही है निगाहें,
बेचैनियों से मुझे मिटाने में....
मै भी जी चुका हूँ हर लम्हा,
वो दो कदम साथ निभाने में....

Wednesday, May 26, 2010

करवटें है इन पलकों में

ये करवटें है इन पलकों में,
जिसमे हुस्न गुलजार हैं राज़ी .....

मंद मंद सच कह रही सांसें,
पार हो गए है हम प्रेम की बाज़ी....

सोच में सजे है सेज के बादल,
थाम भी लो अब मुझे अपने आँचल...

है बेकरार अब ये मादक रातें,
रोज़ ही बहलाती है आते जाते....

इश्क के छींटे हो चले है पाजी,
जिसमे हुस्न गुलजार हैं राज़ी .....

Monday, May 24, 2010

कहती है कश्तियाँ

कह रही है कश्तियाँ,
दूर ठहरेंगे आज हम....
साहिल पे अक्सर मंजिलें
नही मिलती....

यू ही
कट जाती है जिंदगी अकेले,
पर अंधेरो में कभी आँख नही लगती....

कह्कशे ही बचते है इस मुसाफिर खाने में,
इश्क की फिर कभी प्यास नही लगती....

कहती रहती है कश्तियाँ,
लहरों पे अपना आशियाना अच्छा,
साहिल की अक्सर हमें सही राह नही दिखती....

Monday, May 17, 2010

डूबते लम्हे

लम्बी हो गयी थी अपनी सांसें,
मिट रही थी जाते जाते....
शहनाईयाँ थी लहरों की साथ साथ,
रो पड़ी थी वो भी किनारे आते आते....


बीच मझधार में बातों की आड़ में,
कतरा कतरा मेरा तड़पता मिला ....
अंश अंश से रूबरु था आँचल,
रुसवाइयों से पर हारता मैं चला....

अंधेड़ रात में, बंदिशों की दीवाल पे,
हर इक लकीर बनाता मैं मिला....
नब्जो के जाल में थी जिंदगी,
खुद ही हर नब्ज़ मिटाता मैं चला....

Sunday, May 16, 2010

शिकायतों के दौर थे...

शिकायतों के कुछ यूँ दौर चले,
कुछ छोटे कुछ बड़ी ओर चले.....

हर इक लम्हे की याद थी उनमे,
मेरे प्रेम की कुछ फ़रियाद थी उनमे....

छोटी सी उन खूबसूरत आँखों में,
मेरे प्रेम से सजी कई बात थी उनमें....

मै ख़ामोशी से उन्हें संजोता रहा,
खुद की बैचिनी भिगोता रहा....

नित दिन कोशिशें करता रहा,
उस हसीं के लायक मै होता रहा....

एहसास कभी न ये उसको रहा,
मै उस बिन कितना मरता रहा....

आज जब उन शिकायतों के दौर नही,
क्यूँ वो नज़रें हमारी ओर नही....

बदल के मुझको इस ज़माने में,
क्यू वो आज नए दौर चले....

Thursday, May 13, 2010

ख्वाहिश

चंद फुर्सत के लम्हें जी रहा हूँ,
ख्वाहिशों के इन बादलों में....

सिलवटो में बेरोजगार है यूं,
इश्क भी ऐसे ही काफिलो में....

नादान है अब इश्क की तबियत,
रंगीनियत से इन फासलों में....

है ये बस मासुमिअत या बेकरारी,
ख्वाहिशों के इन बादलों में....

चंद फुर्सत के लम्हें जी रहा हूँ,
आप ही के इन काज़लों में....

Sunday, April 11, 2010

लम्हें कुछ इस तरह बीते है.....

हिचकिचाहट भरी इन झलकियों से,
किनारों पे मचलती इन कश्तियो में,

हर लम्हा कुछ इस तरह बीते है.....

बूंदों की परछाइयों सा ही साथ है ,
सिलवटो में महकती साँसें बस हाथ है.....

भीगे
कदमो से बस मै बढ़ता चला,
ख्वाब के आंगन भिगोता चला....

बूंदों ने जब कभी पैमाइश की,
मै खामोश सा सागर में प्रेम पिरोता रहा....

मैखानो में ही अब सपने जीते है.....
हर लम्हें कुछ इस तरह बीते है.....

Friday, April 9, 2010

मन की बातें

मन से मन की बात थी बस,
पर क्यूँ फैली है इस आँगन में.....

परे हो रही है यादें,
मै रह गया प्यासा इस सावन में.....

अंकुरित है अब मेरी सांसें,
शोभित है नए मन की बाहें.....

बंद मुठ्ठी खोल चले है,
बिन फेरे हम नयी ओर चले है.....

है शुक्रिया हम पर इश्क के,
संग जिसके नए दौर खुले है....

है मन की ही बात ये बस,
प्रेमसिन्चित एहसास है बस.....

Tuesday, March 23, 2010

अगर तुम मिलो तो सही.....

प्यार के भंवर गहरे से हैं,
नित नए रंग छलके से हैं,
ज़र्रे ज़र्रे में मै दीवाना सही.....

मगर तुम मिलो तो कही.....

अंदाज़ ये हैरान से है,
शबनम से तुम पे बह से गए है.....
अपनों में मै बैगाना सही,

मगर तुम मिलो तो सही.....

फूलों की सरगम पे है,
सपनो की मंजिल सी है....
खूबसूरत साथ आशिकाना सही,

अगर तुम मिलो तो सही.....

Thursday, March 11, 2010

अभिलाशा

अभिलाशा की गुंजाइश न हो,
क्यूँ मन विचलित शाम न हो ....
अंधियारों में भी रात न हो ,
फिर क्यूँ आंसुओं के जाम न हो....

गेसूओं के आराम न हो,
और प्यार के दो काम हो....
रन्गीनिअत भरी इन बाँहों में,
इश्क का कहीं नाम न हो......

जब जिंदगी तुम बिन रास न हो,
फिर क्यूँ हम संग साथ न हो....
जब तुम से कोई ख़ास न हो,
तो जन्नत से कम ये बात न हो....

Wednesday, February 24, 2010

ये दूरियाँ

फासले हो रहे है भारी,
मर जाएगी अब प्रीत हमारी.....

पन्नों में सब सम्मिहित है ये,
ना समझे तो है उलझने हमारी ...

बढ़ रही है मन की हिलोरें,
दूर क्यू हो रही है मंजिल की डोरें....

प्रेम पतिता है जो दिल से सवारीं,
भूल ना जाए कही ये रीत हमारी....

फासले हो रहे है भारी,
मर जाएगी अब प्रीत हमारी.....

Thursday, February 11, 2010

दो पल के कारवां

अजनबी सा ये साथ है...
पहलु में मासूमियत ख़ास है..
दो पल ही के कारवां है,
पर मीलों लम्बी दास्ताँ है....
बंदिशों में हो रहा समाँ है,
दिल तब भी हसीन है जवाँ है....
तकल्लुफ है बस लफ्ज़ में,
अंखियों में पर जन्नत बयाँ है....
मग्न सी इन रंगीन राह में,
लहराई जुल्फों की छाँव में,
मासूमियत की खुशबु है....
खूबसूरती का साथ है...
दो पल ही के कारवां है,
पर मीलों लम्बी दास्ताँ है....

Monday, February 8, 2010

भीगी रात

भीगी सी बूंदों पे शरमाहट है,
कमसिम से आज क्यूँ खोये से है....

झिलमिल सी चांदनी बिखरी है,
ख़ामोशी से क्यूँ बेखबर से है....

बातें है आँखों में आसमाँ जितनी,
पर लफ्ज़ क्यूँ हमारे सोये से है....

इश्क और निष् से रूबरू है,
फिर कागजों में क्यूँ भिगोये से है....

ये मोती भी तो सपने ही है,
पर अंधेरों में संजोये से क्यूँ है....

भीगी सी बूंदों पे शरमाहट है,
कमसिम से आज क्यूँ खोये से है....

Sunday, January 24, 2010

मुस्कुराती मसरुफियत

मुस्कुराती है मसरुफियत मेरी,
संगीनियत सी है अब ये पहेली ...

हर लम्हा है एक नज्म फेरी,
ऐसे ही जिंदा है मसरुफियत मेरी.....

इन शब्दों में कुछ ख़ास है,
अंतर्मन में आप ही आप है....

कारवां ये अभी भी अहम् है,
दिल्लगी में क्यूँ इतने वहम है....

तिनके सी दूर है अब चिंगारी,
किनारों पे क्यूँ मिलती है मंजिल हमारी....

Friday, January 1, 2010

तेरे संग

गुनगुनाते हुए दिन थे,
कुछ मीठे कुछ तुम बिन थे.....

गलियों में फिरते,
सपनो में रहते,
जन्नत में संग हम थे....

आँखों में हर बात,
एहसास में हर पल पास,
कितने अच्छे हम संग थे....

शर्मीली शरारत हसीन प्यार,
आगोश में भी कई रंग थे,
गुनगुनाते हुए दिन थे,
जब जब हम संग थे....

परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

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