पर क्यूँ फैली है इस आँगन में.....
परे हो रही है यादें,
मै रह गया प्यासा इस सावन में.....
अंकुरित है अब मेरी सांसें,
शोभित है नए मन की बाहें.....
बंद मुठ्ठी खोल चले है,
बिन फेरे हम नयी ओर चले है.....
है शुक्रिया हम पर इश्क के,
संग जिसके नए दौर खुले है....
है मन की ही बात ये बस,
प्रेमसिन्चित एहसास है बस.....
अंकुरित है अब मेरी सांसें,
शोभित है नए मन की बाहें.....
बंद मुठ्ठी खोल चले है,
बिन फेरे हम नयी ओर चले है.....
है शुक्रिया हम पर इश्क के,
संग जिसके नए दौर खुले है....
है मन की ही बात ये बस,
प्रेमसिन्चित एहसास है बस.....
lovely as ever
ReplyDeletethnx dear....
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