Monday, June 4, 2012

फिर जाती है उंगलियाँ उन परछाइयों  पर कभी,
और बंद हो जाती है नज़र
शुरू होता है  का सफ़र, 
 सोचते है समेटेंगे अपने यादों के भंवर पर सिलसिले ये कम  नहीं है,
अब शायद बिन आप हम नहीं है,

Sunday, January 1, 2012

बीता है दिसम्बर

फिर से बीता है कल दिसम्बर,
याद कराता रहा कुछ साल पहले का मंजर....


जहन में है अभी भी वो छाप अन्दर,
मिट जायेंगे हम फिर भी न मिटेगा समंदर....

फिर से तबियत पर दिखा असर,
क्यूँ करती रही इंतज़ार हमारी हर नज़र....

सपना था गहरा या सच थी कसर,
साथ चलने को इख्तियार नहीं दिल अब और सफ़र....


परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन