Sunday, November 6, 2011

वक़्त है कम

वजूद नहीं मिलता अब फुर्सत की शाम में,
नित दिन है कोशिशें कौड़ियों के दाम में....

गुजर जाती है रात एक इशारा नहीं मिलता,
आँखों में नींद का नज़ारा भी नहीं दिखता....

रंजिशें है बढ़ गए चित और चेतना के,
लम्बें है लम्हे अब इस हृदय वेदना के.....

अब ज़िन्दगी है छोटी और वक़्त है कम,
मिल जाओ हमसे शायद फिर न मिले हम.....



Friday, October 14, 2011

चित वेदना

हम इंतज़ार करते रहे,
वो बेकरार सोते रहे.....

हम सपनो को रोकते रहे,
वो खवाबो में सोचते रहे.....

हम इश्क दिखाते रहे,
वो मोहब्बत दबाते रहे.....

हम दूरियों को मिटाते रहे,
वो नजदीकियां छिपाते रहे.....

हम फुर्सत से हँसाते रहे,
वो नादानियों से हमें रुलाते रहे.....

हम कुण्डलियाँ मिलाते रहे,
वो मंगल दोष दिखाते रहे.....

हम तकल्लुफ गिराते रहे,
वो मजबूरियाँ गिनाते रहे.....

हम बेहिसाब मरते रहे,
वो वादों का हिसाब करते रहे.....


परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन