मुस्कराहट छीन लेते है जब अपने
नब्ज़ थम सी जाती है लगने....
एहसास भी क्यूँ लगते है सपनें,
मुस्कराहट छीन लेते है जब अपने।
नब्ज़ थम सी जाती है लगने....
वक़्त का कोई मोल नहीं लगता,
नींद का आभास भी नहीं मिलता....
याद करना भी अब हो नहीं पता,
क्यूंकि भूल जाना नहीं आता....
एहसास भी क्यूँ लगते है सपनें,
मुस्कराहट छीन लेते है जब अपने।