Saturday, February 22, 2014

मुस्कराहट छीन लेते है जब अपने
नब्ज़ थम सी जाती है लगने....

वक़्त का कोई मोल नहीं लगता,
नींद का आभास भी नहीं मिलता....

याद करना भी अब हो नहीं पता,
क्यूंकि भूल जाना नहीं आता....

एहसास भी क्यूँ लगते है सपनें,
मुस्कराहट छीन लेते है जब अपने।


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परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन