ये करवटें है इन पलकों में,
जिसमे हुस्न गुलजार हैं राज़ी .....
मंद मंद सच कह रही सांसें,
पार हो गए है हम प्रेम की बाज़ी....
सोच में सजे है सेज के बादल,
थाम भी लो अब मुझे अपने आँचल...
है बेकरार अब ये मादक रातें,
रोज़ ही बहलाती है आते जाते....
इश्क के छींटे हो चले है पाजी,
जिसमे हुस्न गुलजार हैं राज़ी .....
Wednesday, May 26, 2010
Monday, May 24, 2010
कहती है कश्तियाँ
कह रही है कश्तियाँ,
दूर ठहरेंगे आज हम....
साहिल पे अक्सर मंजिलें नही मिलती....
यू ही कट जाती है जिंदगी अकेले,
पर अंधेरो में कभी आँख नही लगती....
कह्कशे ही बचते है इस मुसाफिर खाने में,
इश्क की फिर कभी प्यास नही लगती....
कहती रहती है कश्तियाँ,
लहरों पे अपना आशियाना अच्छा,
साहिल की अक्सर हमें सही राह नही दिखती....
दूर ठहरेंगे आज हम....
साहिल पे अक्सर मंजिलें नही मिलती....
यू ही कट जाती है जिंदगी अकेले,
पर अंधेरो में कभी आँख नही लगती....
कह्कशे ही बचते है इस मुसाफिर खाने में,
इश्क की फिर कभी प्यास नही लगती....
कहती रहती है कश्तियाँ,
लहरों पे अपना आशियाना अच्छा,
साहिल की अक्सर हमें सही राह नही दिखती....
Monday, May 17, 2010
डूबते लम्हे
लम्बी हो गयी थी अपनी सांसें,
मिट रही थी जाते जाते....
शहनाईयाँ थी लहरों की साथ साथ,
रो पड़ी थी वो भी किनारे आते आते....
बीच मझधार में बातों की आड़ में,
कतरा कतरा मेरा तड़पता मिला ....
अंश अंश से रूबरु था आँचल,
रुसवाइयों से पर हारता मैं चला....
अंधेड़ रात में, बंदिशों की दीवाल पे,
हर इक लकीर बनाता मैं मिला....
नब्जो के जाल में थी जिंदगी,
खुद ही हर नब्ज़ मिटाता मैं चला....
मिट रही थी जाते जाते....
शहनाईयाँ थी लहरों की साथ साथ,
रो पड़ी थी वो भी किनारे आते आते....
बीच मझधार में बातों की आड़ में,
कतरा कतरा मेरा तड़पता मिला ....
अंश अंश से रूबरु था आँचल,
रुसवाइयों से पर हारता मैं चला....
अंधेड़ रात में, बंदिशों की दीवाल पे,
हर इक लकीर बनाता मैं मिला....
नब्जो के जाल में थी जिंदगी,
खुद ही हर नब्ज़ मिटाता मैं चला....
Sunday, May 16, 2010
शिकायतों के दौर थे...
शिकायतों के कुछ यूँ दौर चले,
कुछ छोटे कुछ बड़ी ओर चले.....
हर इक लम्हे की याद थी उनमे,
मेरे प्रेम की कुछ फ़रियाद थी उनमे....
छोटी सी उन खूबसूरत आँखों में,
मेरे प्रेम से सजी कई बात थी उनमें....
मै ख़ामोशी से उन्हें संजोता रहा,
खुद की बैचिनी भिगोता रहा....
नित दिन कोशिशें करता रहा,
उस हसीं के लायक मै होता रहा....
एहसास कभी न ये उसको रहा,
मै उस बिन कितना मरता रहा....
आज जब उन शिकायतों के दौर नही,
क्यूँ वो नज़रें हमारी ओर नही....
बदल के मुझको इस ज़माने में,
क्यू वो आज नए दौर चले....
कुछ छोटे कुछ बड़ी ओर चले.....
हर इक लम्हे की याद थी उनमे,
मेरे प्रेम की कुछ फ़रियाद थी उनमे....
छोटी सी उन खूबसूरत आँखों में,
मेरे प्रेम से सजी कई बात थी उनमें....
मै ख़ामोशी से उन्हें संजोता रहा,
खुद की बैचिनी भिगोता रहा....
नित दिन कोशिशें करता रहा,
उस हसीं के लायक मै होता रहा....
एहसास कभी न ये उसको रहा,
मै उस बिन कितना मरता रहा....
आज जब उन शिकायतों के दौर नही,
क्यूँ वो नज़रें हमारी ओर नही....
बदल के मुझको इस ज़माने में,
क्यू वो आज नए दौर चले....
Thursday, May 13, 2010
ख्वाहिश
चंद फुर्सत के लम्हें जी रहा हूँ,
ख्वाहिशों के इन बादलों में....
सिलवटो में बेरोजगार है यूं,
इश्क भी ऐसे ही काफिलो में....
नादान है अब इश्क की तबियत,
रंगीनियत से इन फासलों में....
है ये बस मासुमिअत या बेकरारी,
ख्वाहिशों के इन बादलों में....
चंद फुर्सत के लम्हें जी रहा हूँ,
आप ही के इन काज़लों में....
ख्वाहिशों के इन बादलों में....
सिलवटो में बेरोजगार है यूं,
इश्क भी ऐसे ही काफिलो में....
नादान है अब इश्क की तबियत,
रंगीनियत से इन फासलों में....
है ये बस मासुमिअत या बेकरारी,
ख्वाहिशों के इन बादलों में....
चंद फुर्सत के लम्हें जी रहा हूँ,
आप ही के इन काज़लों में....
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