Sunday, July 26, 2009

सोच

इन पलकों के दरम्यान.....
है अब कहानी मेरी।
रहे अब वहाँ खुशी.....
यही है मानी मेरी

लफ्जों में भी न बात है.....
ऐसी है कहानी मेरी।
आंखों ही में मुलाकात है.....
कितनी है वो सयानी मेरी॥

सपनो में भी अब साथ है.....
प्यारी है वो रानी मेरी।
नूर सा बस गया हूँ.....
क्यूँ न रहे वो दीवानी मेरी॥

इन पलकों
के दरम्यान,
ही अब है जिंदगानी मेरी...

Monday, July 20, 2009

चंद पाती..

तुमसे ही...
छुप छुप के,
भीगी स्याही से....
लिखे है चंद पाती.....

तुमसे दूरियां....
कब नजदीकियां गई,
ये एहसास है ये कराती.....

बहके बहके से अक्षर...
है कैसे खुराफाती...
मेरी नजरो से देखो.....
है पल पल ये तुम्हे निहारती...

छवि सी है....
ये तेरी बनाती,
उन्हें ही देखते हुए....
लिखता हु मै ये चंद पाती.....


Sunday, July 19, 2009

तेरी मूरत

आगाज़ है उस मोड़ से,
जिस पर कही अंत नही...
ये सफर है तेरे मेरे प्रेम का,
जिससे मै जुड़ा हुआ हूँ...

रोज़ इक नई सड़क है,
वहाँ भी तेरी ही मूरत है..
तस्लीफ से उसे
देखता ही रहता हूँ...
उसी की तरफ़ बढता रहता हूँ...

ये सफर है तेरे मेरे प्रेम का,
जिससे मै जुड़ा हुआ हूँ...

दो रास्ता भी जब,
अगर कभी पाया है..
एक पे गम,
दुसरे पे तेरी खूबसूरत काया है ...

ये सफर है तेरे मेरे प्रेम का,
जिससे मै जुड़ा हुआ हूँ...
अब जिसका कही अंत नही....

Saturday, July 18, 2009

अजब सी मिठास

कुछ लफ्ज़ हमारे यूँ बिखरे,
स्याही ने भी कदम कुरेद दिए..
सोच में ही अभी थे हम,
और संजीदे खींच गए..

कुछ अजब ही मिठास थी आज,
अंतराग्नि तक वे बस गए..
मिश्री सी थी जैसे आज स्याही में,
बहकते ही चले गए..

मोह में थे जनाब के,
पर असर ही कुछ ऐसा हुआ..
आज लफ्जों से ही प्रेम कर गए..



Friday, July 17, 2009

मिटते पल

पल पल मिट रहे कल है,
चार पल हम है..
चार पल को कल है ..
सब कल की ही बात है..
जितने भी मेरे पल है।

सपने भी अब केवल पल है,
मेरी भीगी आंखों का जल है..
अब बस कुछ ही पल है..
जो अब मेरा कल है।

पल पल मिट रहे कल है,
चार पल हम है..
चार पल को कल है.....

Monday, July 13, 2009

बिन फेरे हम तेरे

ऐसा क्यूँ हो रहा है,
नब्ज़ ही नहीं अब होश में,

रोज़ इक नया जन्म है,
इन फेरों से मशक्कत में,

मीठी सी मुस्कान लिए रहता हूँ,
तेरे ही सवेरों में..

है
बिन फेरे हम तेरे,
फिर क्यूँ है तू इन फेरों में...

संजिली बूँदें

पलकों के झरोखों से झांकते,
खामोश नज्मे भी पढ़ते है,
फिर क्यूँ सजने से डरते है ये नयन तरसे।

इन महकती बूंदों की कवायद नही ये,
की आज ये राज़ भी हमें बता दिया,

सहमे हुए थे हम,
पर संजीले रंग में नहला दिया।

तिनके का घरौंदा

बेखबर साँसों में एक रूह नहमी है,
थाम लू आज इस सिसकते वक़्त को,

पर होठों पे उनके कुछ लफ्ज़ है,
फिर कैसे रोकूँ इस वक़्त को,

भंवर मे अब है दिल,
तिनके संजोये बैठा है,
उस घरौंदे में,
जिसने उसे जाना ही नहीं है ।

सपनो का महल

भीगी पलकों की आहट सी हुई,
जाने हमें चाहत सी हुई,

चंद लफ्जो का आगाज़ सा लगा,
फिर एक सपनो का महल सा सज़ा।

Sunday, July 12, 2009

सच ही तो है ये

चंद लफ्ज़ और साज़ बहके है,
ख्याल में....

तिल तिल नब्ज़ सहमे है,
उनके इंतज़ार में....

साथ ही है अब इतना खूबसूरत,
क्यूँ हो रहे हम प्यार में....

परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन