Sunday, July 19, 2009

तेरी मूरत

आगाज़ है उस मोड़ से,
जिस पर कही अंत नही...
ये सफर है तेरे मेरे प्रेम का,
जिससे मै जुड़ा हुआ हूँ...

रोज़ इक नई सड़क है,
वहाँ भी तेरी ही मूरत है..
तस्लीफ से उसे
देखता ही रहता हूँ...
उसी की तरफ़ बढता रहता हूँ...

ये सफर है तेरे मेरे प्रेम का,
जिससे मै जुड़ा हुआ हूँ...

दो रास्ता भी जब,
अगर कभी पाया है..
एक पे गम,
दुसरे पे तेरी खूबसूरत काया है ...

ये सफर है तेरे मेरे प्रेम का,
जिससे मै जुड़ा हुआ हूँ...
अब जिसका कही अंत नही....

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परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन