Sunday, November 6, 2011

वक़्त है कम

वजूद नहीं मिलता अब फुर्सत की शाम में,
नित दिन है कोशिशें कौड़ियों के दाम में....

गुजर जाती है रात एक इशारा नहीं मिलता,
आँखों में नींद का नज़ारा भी नहीं दिखता....

रंजिशें है बढ़ गए चित और चेतना के,
लम्बें है लम्हे अब इस हृदय वेदना के.....

अब ज़िन्दगी है छोटी और वक़्त है कम,
मिल जाओ हमसे शायद फिर न मिले हम.....



परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन