कुछ लफ्ज़ हमारे यूँ बिखरे,
स्याही ने भी कदम कुरेद दिए..
सोच में ही अभी थे हम,
और संजीदे खींच गए..
कुछ अजब ही मिठास थी आज,
अंतराग्नि तक वे बस गए..
मिश्री सी थी जैसे आज स्याही में,
बहकते ही चले गए..
मोह में थे जनाब के,
पर असर ही कुछ ऐसा हुआ..
आज लफ्जों से ही प्रेम कर गए..
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