चंद फुर्सत के लम्हें जी रहा हूँ,
ख्वाहिशों के इन बादलों में....
सिलवटो में बेरोजगार है यूं,
इश्क भी ऐसे ही काफिलो में....
नादान है अब इश्क की तबियत,
रंगीनियत से इन फासलों में....
है ये बस मासुमिअत या बेकरारी,
ख्वाहिशों के इन बादलों में....
चंद फुर्सत के लम्हें जी रहा हूँ,
आप ही के इन काज़लों में....
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