Monday, May 24, 2010

कहती है कश्तियाँ

कह रही है कश्तियाँ,
दूर ठहरेंगे आज हम....
साहिल पे अक्सर मंजिलें
नही मिलती....

यू ही
कट जाती है जिंदगी अकेले,
पर अंधेरो में कभी आँख नही लगती....

कह्कशे ही बचते है इस मुसाफिर खाने में,
इश्क की फिर कभी प्यास नही लगती....

कहती रहती है कश्तियाँ,
लहरों पे अपना आशियाना अच्छा,
साहिल की अक्सर हमें सही राह नही दिखती....

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परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

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