Sunday, May 16, 2010

शिकायतों के दौर थे...

शिकायतों के कुछ यूँ दौर चले,
कुछ छोटे कुछ बड़ी ओर चले.....

हर इक लम्हे की याद थी उनमे,
मेरे प्रेम की कुछ फ़रियाद थी उनमे....

छोटी सी उन खूबसूरत आँखों में,
मेरे प्रेम से सजी कई बात थी उनमें....

मै ख़ामोशी से उन्हें संजोता रहा,
खुद की बैचिनी भिगोता रहा....

नित दिन कोशिशें करता रहा,
उस हसीं के लायक मै होता रहा....

एहसास कभी न ये उसको रहा,
मै उस बिन कितना मरता रहा....

आज जब उन शिकायतों के दौर नही,
क्यूँ वो नज़रें हमारी ओर नही....

बदल के मुझको इस ज़माने में,
क्यू वो आज नए दौर चले....

4 comments:

  1. अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं,
    खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ मैं ,
    रोक पाए न जिसको ये सारी दुनिया,
    वोह एक बूँद आँख का पानी हूँ मैं.....
    सबको प्यार देने की आदत है हमें,
    अपनी अलग पहचान बनाने की आदत है हमे,
    कितना भी गहरा जख्म दे कोई,
    उतना ही ज्यादा मुस्कराने की आदत है हमें...
    इस अजनबी दुनिया में अकेला ख्वाब हूँ मैं,
    सवालो से खफा छोटा सा जवाब हूँ मैं,
    जो समझ न सके मुझे, उनके लिए "कौन"
    जो समझ गए उनके लिए खुली किताब हूँ मैं,
    आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
    दिल से पूछोगे तो दर्द का सैलाब हूँ मैं,,,,,
    "अगर रख सको तो निशानी, खो दो तो सिर्फ एक कहानी हूँ

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  2. मंजिलें भी उसकी थी रास्ता भी उसका था, एक मैं अकेला था काफिला भी उसका ,साथ-साथ चलने की सोच भी उसकी थी फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था, आज क्यूँ मैं अकेला हूँ दिल ये सवाल करता ...लोग तो उसके थे पर क्या .......खुदा भी उसका था....

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  3. मंजिलें भी उसकी थी रास्ता भी उसका था, एक मैं अकेला था काफिला भी उसका था ,साथ-साथ चलने की सोच भी उसकी थी फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था, आज क्यूँ मैं अकेला हूँ दिल ये सवाल करता ...लोग तो उसके थे पर क्या .......खुदा भी उसका था....

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परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

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