खुशनसीब शाम अब साथ नहीं रहती,
दिल-ऐ-मुक्कद्दर अब ये मंज़ूर नहीं होता,
देखते है हलफनामा कब तक कबूल नहीं होता....
जिंदगी की भी अब पहचान नहीं रहती....
बेवजह उसी मोड़ पे छूट गयी है सांसें....
जी लेने की भी उन्हें अब फरमाइश नहीं रहती....
जी लेने की भी उन्हें अब फरमाइश नहीं रहती....
दिल-ऐ-मुक्कद्दर अब ये मंज़ूर नहीं होता,
देखते है हलफनामा कब तक कबूल नहीं होता....
एक मुस्कराहट कैसे जिंदगी बन गयी हमारी,
थे कुछ हालात जो जिंदगी लुटा भी दिये हमारी....
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