फिर जाती है उंगलियाँ उन परछाइयों पर कभी,
और बंद हो जाती है नज़र
शुरू होता है का सफ़र,
और बंद हो जाती है नज़र
शुरू होता है का सफ़र,
सोचते है समेटेंगे अपने यादों के भंवर पर सिलसिले ये कम नहीं है,
अब शायद बिन आप हम नहीं है,
अब शायद बिन आप हम नहीं है,
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