फिर से बीता है कल दिसम्बर,
याद कराता रहा कुछ साल पहले का मंजर....
जहन में है अभी भी वो छाप अन्दर,
जहन में है अभी भी वो छाप अन्दर,
मिट जायेंगे हम फिर भी न मिटेगा समंदर....
फिर से तबियत पर दिखा असर,
क्यूँ करती रही इंतज़ार हमारी हर नज़र....
सपना था गहरा या सच थी कसर,
साथ चलने को इख्तियार नहीं दिल अब और सफ़र....
फिर से तबियत पर दिखा असर,
क्यूँ करती रही इंतज़ार हमारी हर नज़र....
सपना था गहरा या सच थी कसर,
साथ चलने को इख्तियार नहीं दिल अब और सफ़र....
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