Thursday, March 11, 2010

अभिलाशा

अभिलाशा की गुंजाइश न हो,
क्यूँ मन विचलित शाम न हो ....
अंधियारों में भी रात न हो ,
फिर क्यूँ आंसुओं के जाम न हो....

गेसूओं के आराम न हो,
और प्यार के दो काम हो....
रन्गीनिअत भरी इन बाँहों में,
इश्क का कहीं नाम न हो......

जब जिंदगी तुम बिन रास न हो,
फिर क्यूँ हम संग साथ न हो....
जब तुम से कोई ख़ास न हो,
तो जन्नत से कम ये बात न हो....

No comments:

Post a Comment

परिचय

My photo
प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन