अभिलाशा की गुंजाइश न हो,
क्यूँ मन विचलित शाम न हो ....
अंधियारों में भी रात न हो ,
फिर क्यूँ आंसुओं के जाम न हो....
गेसूओं के आराम न हो,
और प्यार के दो काम न हो....
रन्गीनिअत भरी इन बाँहों में,
इश्क का कहीं नाम न हो......
जब जिंदगी तुम बिन रास न हो,
फिर क्यूँ हम संग साथ न हो....
जब तुम से कोई ख़ास न हो,
तो जन्नत से कम ये बात न हो....
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