फासले हो रहे है भारी,
मर जाएगी अब प्रीत हमारी.....
पन्नों में सब सम्मिहित है ये,
ना समझे तो है उलझने हमारी ...
बढ़ रही है मन की हिलोरें,
दूर क्यू हो रही है मंजिल की डोरें....
प्रेम पतिता है जो दिल से सवारीं,
भूल ना जाए कही ये रीत हमारी....
फासले हो रहे है भारी,
मर जाएगी अब प्रीत हमारी.....
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