Monday, February 8, 2010

भीगी रात

भीगी सी बूंदों पे शरमाहट है,
कमसिम से आज क्यूँ खोये से है....

झिलमिल सी चांदनी बिखरी है,
ख़ामोशी से क्यूँ बेखबर से है....

बातें है आँखों में आसमाँ जितनी,
पर लफ्ज़ क्यूँ हमारे सोये से है....

इश्क और निष् से रूबरू है,
फिर कागजों में क्यूँ भिगोये से है....

ये मोती भी तो सपने ही है,
पर अंधेरों में संजोये से क्यूँ है....

भीगी सी बूंदों पे शरमाहट है,
कमसिम से आज क्यूँ खोये से है....

1 comment:

  1. nice buddy ...tumhara yeh talent toh abhi tak hum jaantey hi nahi the ..gr8 i would lyk to read more

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परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन