Sunday, January 24, 2010

मुस्कुराती मसरुफियत

मुस्कुराती है मसरुफियत मेरी,
संगीनियत सी है अब ये पहेली ...

हर लम्हा है एक नज्म फेरी,
ऐसे ही जिंदा है मसरुफियत मेरी.....

इन शब्दों में कुछ ख़ास है,
अंतर्मन में आप ही आप है....

कारवां ये अभी भी अहम् है,
दिल्लगी में क्यूँ इतने वहम है....

तिनके सी दूर है अब चिंगारी,
किनारों पे क्यूँ मिलती है मंजिल हमारी....

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परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

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