Thursday, December 3, 2009

बेगारियत

कोशिशों से निहित है ये,
मसरूफ दिल की बातें....

तसल्ली से घायल है अब,
मेरी उलझी उलझी साँसें....

स्याही में डूब गयी है,
चंद पल की बरसातें....

ख़ामोशी से है नैन,
ढूंढते है कुछ सुकून की रातें....

कोशिशों से निहित है ये,
मसरूफ दिल की बातें....

नई सी सोच है बन गयी,
पैमानों से है फिर भी रोज़ टकराते.....

1 comment:

  1. are sir ji......bhoot khoob.................aap ke bare me to hame elm hi n tha ki aap etne ache.........baten likhte he.......love u yar......
    diwakar

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परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

भक्तजन