Saturday, September 26, 2015

स्मरण


अफ़साना तेरा इस कदर नब्ज मे घुल चुका है,
लहू भी मेरा अब लाल हो चला है....

शिद्दतें ये मेरी क्या अब गुनाह है,
नहीं समझेंगे आप इश्क़ अब बेपनाह है....

इक ख़ुशी जो मेरी तुझसे जुड़ी है,
उसके बिना ये जिंदगी अब अधूरी है....

इतनी शिददत से तू अब मुझसे जुड़ा है.
गर हमसफ़र बने तो मान लेंगे कि खुदा है…

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परिचय

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प्रेम में सिंचित कुछ रचनाएँ मेरी भीगी स्याही से.......

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