वजूद नहीं मिलता अब फुर्सत की शाम में,
नित दिन है कोशिशें कौड़ियों के दाम में....
नित दिन है कोशिशें कौड़ियों के दाम में....
गुजर जाती है रात एक इशारा नहीं मिलता,
आँखों में नींद का नज़ारा भी नहीं दिखता....
रंजिशें है बढ़ गए चित और चेतना के,
लम्बें है लम्हे अब इस हृदय वेदना के.....
अब ज़िन्दगी है छोटी और वक़्त है कम,
मिल जाओ हमसे शायद फिर न मिले हम.....
आँखों में नींद का नज़ारा भी नहीं दिखता....
रंजिशें है बढ़ गए चित और चेतना के,
लम्बें है लम्हे अब इस हृदय वेदना के.....
अब ज़िन्दगी है छोटी और वक़्त है कम,
मिल जाओ हमसे शायद फिर न मिले हम.....